Tuesday 2 August 2011

जम्मू-कश्मीर की यात्रा परम्परा


अजय भारती 
भारत धर्म प्रधान देश है। यहां अति प्राचीन काल से ही समाज ने अपनी विकास यात्रा के अनुभवों को सामाजिक एवं धार्मिक स्वरूप देकर दैनिक जीवन का अंग बनाया। देव स्थान, तीर्थस्थान, तीर्थ यात्रा इन्हीं अनुभवों के कारण भारतीय समाज जीवन का एक प्रमुख अंग बन गया। व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामाजिक एवं राष्ट्रीय हितों का अनोखा समावेश तथा सकारात्मक क्रिया का अद्वितीय समागम है, तीर्थ यात्रा में।

देश के कोने-कोने में फैले तीर्थस्थान समाज के प्रत्येक अंग को आस्था एवं विश्वास की डोर में बांधकर अपनी ओर खींच लेते हैं। साधारण से साधारण भारतीय अधिक से अधिक तीर्थ स्थलों पर दर्शनार्थ जाने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। बहुत बड़ी संख्या में लोग घरों से निकलते हैं और भौगोलिक दूरी, दुर्गम मार्गों की कष्टदायक यात्रा को हंसते हुए झेलने की तत्परता तथा बिना किसी भेदभाव के इन तीर्थ स्थलों पर पहुंच जाते है।

देश के अन्य क्षेत्रों के समान ही जम्मू-कश्मीर के पवित्र तीर्थ स्थल भी देश विदेश के श्रद्धालुओं को अति प्राचीन काल से अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं। जम्मू कश्मीर पर प्रभू हर प्रकार से मेहरबान रहा है। वह प्राकृतिक सौन्दर्य हो या यहां की जलवायु, हिममण्डित पर्वत शिखर हो या स्वच्छ जल से लबालब भरे झील झरने, फल फूलों की अनगिनित किस्मों के साथ-साथ रूह को ताजा करने वाली हवा के झोकें आध्यात्मिक उत्थान के लिए हर प्रकार से उपयुक्त स्थान बना देते हैं।

तभी तो देवादिदेव महादेव ने अमरनाथ गुफा को माता पार्वती को अमर कथा सुनाने के लिए चुना। बाबा अमरनाथ ही नहीं जम्मू कश्मीर में कोई ऐसा स्थान नहीं है जो अपने आप में तीर्थ न हो। हर गांव, हर शहर किसी न किसी महापुरूष के साथ जुड़ा है तथा लोगों के आस्था का केन्द्र बना हुआ है।

जम्मू-कश्मीर का नाम आते ही दो यात्राएं सहज ही सामने आते हैं। यह दोनों नाम एक प्रकार से जम्मू-कश्मीर के पर्यायवाची हो गये हैं। इनमें से एक है, त्रिकुटा पर्वत शिखरों में आसीन माँ वैष्णव का पवित्र धाम वैष्णव देवी है तथा दूसरा जोजिला की दुर्गम पहाड़ी श्रृंखला पर स्थित बाबा अमरनाथ की पवित्र गुफा की यात्रा है। आज शायद की कोई ऐसा भारतीय होगा जो इन नामों से परिचित न हो।

माता वैष्णव देवी का तो यह आलम है कि 12 महीने, 24 घंटे, सातो दिन, यहां देश के कोने-कोने से आए भक्तों की भीड़ लगी रहती है। जम्मू जोने वाली किसी भी रेलगाड़ी, हवाई जहाज या निजी वाहनों से जाने वालों का 80-90 प्रतिशत भाग वैष्णव देवी के दर्शनार्थ जाता है। हर प्रांत, हर जाति, हर मत को मानने वाले एक साथ ‘‘जय माता दी’’ का जयघोष सामूहिक रूप से लगाते हुए एक दूसरे की सहायता करने को तत्पर रहते हैं। भंडारों पर एक पंक्ति में बैठकर भोजन करते भक्तों की इस न टूटने वाली श्रृंखला के कारण राज्य के आर्थिक विकास में अतुल्य योगदान तो होता ही है, साथ में राष्ट्रीय विचारों का प्रचार और प्रसार भी होता है।

भक्तों की संख्या की बढ़ोतरी का सीधा परिणाम ‘‘माता वैष्णव देवी श्राइन बोर्ड’’ की आमदनी में पर पड़ता है। जिसके परिणामस्वरूप आज राज्य में महत्वपूर्ण शिक्षा संस्थान माता वैष्णव देवी विश्वविद्यालय के रूप में उपस्थित हैं। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि राष्ट्रीय एकता को इस प्रदेश में और सुदृढ़ करने में एक मील का पत्थर साबित हो रही है।

राज्य में दूसरी प्रसिद्ध यात्रा है- बाबा अमरनाथ की पवित्र गुफा में प्राकृतिक रूप से बनने वाला हिम-शिवलिंग। कृष्ण पक्ष में घटने वाली तथा शुक्ल पक्ष में निरन्तर बढ़ते हुए पूर्णमासी को पूर्णतयः विकसित हिम-शिवलिंग के दर्शन मात्र से शिव भक्तों को असीम संतोष प्राप्त होता है। गत दो दशकों में जब जम्मू-कश्मीर राज्य विषेशकर कश्मीर घाटी में अलगाववादियों द्वारा आयोजित तथा पाकिस्तान व अन्य इस्लामी ताकतों द्वारा प्रायोजित व पोषित सशस्त्र आतंकवाद चरम सीमा पर था और हर दिन कश्मीर घाटी को शेष भारत से जोड़ने वाले हर चिन्ह, हर संबंध को कमजोर करने का प्रयास तेज होता जा रहा था, ऐसे में अमरनाथ यात्रा कैसे बची रहती, अलगाववादियों तथा आतंकवादियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी इस यात्रा को बन्द करने की।

यात्रियों पर आतंकी हमले, राज्य सरकार में अलगाववाद समर्थक तत्वों द्वारा प्रशासनिक अड़चनें उत्पन्न करना, औरंगजेब के समय की याद दिलाने वाले जजिया, सुविधा को देने के स्थान पर प्रकार-प्रकार की समस्या उत्पन्न करना, ऐसा हर हथकंडा अजमाया गया। यात्रा को प्रतीकात्मक स्वरूप तक सीमित रखने के लिए हर प्रकार का दबाव बनाया गया, जो अभी तक जारी है। परंतु शिव भक्तों के आस्था और विश्वास के आगे किसी की नहीं चली।

जो यात्रा कभी मात्र कुछ हजार यात्रियों तक ही सीमित थी वही अब लाखों तक हो गई है। यह लाखों शिवभक्त जो भारत के विभिन्न प्रांतों से आते हैं, 8-10 दिन कश्मीर घाटी में गुजारते हैं। हर परिवार औसतन 15-20 हजार रूपये खर्च करता है। यह सारा पैसा घाटी की गरीब जनता के लिए रोजगार के साधन उत्पन्न करते हैं। फिर वह आतंकियों व अलगाववादियों के बहकावे में आने के स्थान पर मेहनत और इज्जत की रोटी कमाने में लग जाते हैं। स्पष्ट दिखाई देता है कि जिन दो महीनों में अमरनाथ यात्री कश्मीर घाटी में होता है उन दिनों यात्रा मार्ग पर रहने वाले कट्टरपंथियों के प्रभाव से बाहर हो जाते हैं। होटल हो या घोड़े वाला, शाल वाला हो या टैक्सी चालक, हर व्यक्ति यात्रियों का स्वागत जय भोला भण्डारी, जय बाबा अमरनाथ के नारों से करते हैं।

यही बात अलगाववादी नेताओं और उनके आकाओं को रास नहीं आती तथा वह इस यात्रा का और जोर शोर से विरोध करते हैं। कट्टरपंथी तो इसे ‘‘हिन्दू भारत का सांस्कृतिक हमला’’ बताते हैं। अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि के प्रति सावधान नेता यही विरोध पर्यावरण की रक्षा के नाम पर करते हैं।

भारत विरोधी ताकतों के बढ़ते विरोध के साथ उस से भी अधिक प्रभावी ढ़ंग से हर वर्ष यात्रा का आयोजन देश के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती जा रही है। अमरनाथ भूमि आंदोलन तथा उसमें अन्ततः आस्था की विजय देश के इतिहास में एक अति महत्वपूर्ण घटना है।

अमरनाथ यात्रा के समान ही पाक अधिकृत कश्मीर स्थित शारदा मंदिर की यात्रा भी एक महत्वपूर्ण यात्रा है। यह तीर्थ स्थान अति महत्वपूर्ण एवं एतिहासिक है। इसी के कारण इस प्रदेश का नाम शारदा देश पढ़ गया। यहां एक विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। इस तीर्थ की यात्रा 1947 के पाक आक्रमण के कारण रूक गई। किंतु हिन्दू समाज द्वारा यह मांग निरंतर उठाई जाती रही है। इस यात्रा को अनुमति न देने से पाकिस्तान और यहां की हिन्दू हितों की अनदेखी करने वाली सरकार का साम्प्रदायिक चेहरा बेनकाब हो गया है।

कश्मीर घाटी स्थित मां राज्ञा (क्षीर भवानी) की यात्रा एक और महत्वपूर्ण यात्रा है। नसलकसी की शिकार कश्मीर घाटी के अल्पसंख्यक समुदाय जो अपने घर गांव या कस्बे में जाने से कांपते है वह तुलमुल्ला जाकर मां क्षीर भवानी के दरबार में उपस्थित होने के लिए हर जोखिम उठाने को तैयार हो जाते है। स्मरणीय है कि जब नाडी मार्ग में रह रहे 36 पंडितों में 24 लोगों का सामूहिक नरसंहार हुआ, उसके तुरंत बाद होने वाली यात्रा में भी रिकार्ड संख्या में यात्री गये।  
चिनाब नदी के तट पर स्थित पाडर क्षेत्र रमणीय है। इसी क्षेत्र में माता चण्डी का पवित्र तीर्थ समुद्र तट से 9500 फीट की ऊंचाई पर मच्चेल गांव में है। जम्मू शहर से लगभग 320 किमी. की दूर पर इस गांव में जाने के लिए अठोलो स्थान से 31 किमी. पैदल यात्रा करनी पड़ती है। इस यात्रा के कारण की पाडर जैसे क्षेत्र का पिछड़ापन नगरवासियों के सामने आते हैं। इस क्षेत्र के भोले भाले लोगों का बाहरी दुनिया से संपर्क का यह एक अहम माध्यम है।

शिवखोडी की एक अन्य महत्वपूर्ण यात्रा भी जम्मू क्षेत्र में है। इस यात्रा पर गत वर्ष लगभग 8 लाख यात्रियों ने यात्रा की। शिवखेड़ी रियासी जिला में पोनी स्थान के समीप है। इस यात्रा पर जाने वाले यात्रियों की बढ़ती संख्या को देखकर एक बोर्ड का गठन किया गया है। यह यात्रा भी राज्य के इस दुर्गम क्षेत्र को तथा यहां की जनता को शेष देश व समाज के सक्रिय संपर्क में लाता है।

परंतु जम्मू कश्मीर की यात्राओं का विशय सिन्धु दर्शन यात्रा का जिक्र किये बिना पूरा नहीं हो सकता। लद्दाख क्षेत्र को यह सौभाग्य प्राप्त है कि भारत की पहचान का एक सशक्त चिन्ह सिन्धु नदी यहां से ही बहती है। भारत विभाजन की त्रास्दी में सिन्धु नदी का भारतीय क्षेत्र में न आना भी है।

विश्व की सबसे लम्बी नदी सिन्धु, जिसके कारण भारत को ‘‘हिन्दूस्थान’’ का नाम मिला। वास्तव में हजारों वर्षों की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पहचान की सबसे बड़ी साक्ष्य है। सिन्धु दर्शन यात्रा हर वर्ष 1 से 3 जून तक लेह में आयोजित की जाती है।

लद्दाख क्षेत्र की बौद्ध संस्कृति से देशवासियों को परिचित कराने तथा सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण क्षेत्र पर भारत के वीर सैनिक कैसी कठिन परिस्थिति में देश की रक्षा करते हैं। इसका अनुभव कराने में सिन्धु दर्शन यात्रा एक आंदोलन के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त कर रही है। यद्यपि यह यात्रा 1997 में प्रारंभ हो गयी, किंतु इस थोड़े से समय में इसके परिणाम स्पष्ट रूप से लद्दाख क्षेत्र में देखने को मिलते है। जो बौद्ध समाज आपेक्षित अनुभव कर रहा था वह अब भारतीय समाज का अभिन्न अंग मानने में गर्व का अनुभव कर रहा है।

कुल मिलाकर जम्मू-कश्मीर की ये तीर्थ यात्राएं पृथकतावादी तथा पाकिस्तानी षड़यंत्रों के साये में पली यहां की जनता को शेष देश तथा समाज के नजदीक लाने में तथा सहस्त्रों वर्ष के सहअस्तित्व को उजागर करने में प्रमुख योगदान दे रही है। इन यात्राओं के कारण भारतीय समाज को इस महत्वपूर्ण प्रदेश की वास्तविकताओं से भी परिचय हो जाता है।  

(लेखक जम्मू कश्मीर विचार मंच के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अध्यक्ष हैं।)


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